Friday, March 23, 2012

उन्मादी प्रेम .....

उफनते समुद्र  की 
लहरों सा 
उन्मादी प्रेम 
चाहता है 
पूर्ण समर्पण 
और निष्ठां 
और जब नहीं होती 
फलित इच्छा सम्पूर्ण 
तो उपज आती है 
मन में कुंठा 
कुंठित मन 
बिखेर देता है 
सारे वजूद को 
ज़र्रा ज़र्रा 
बिखरा वजूद 
बन जाता है 
हास्यास्पद 
घट  जाता है 
व्यक्ति का कद 
लोगों की नज़रों में 
निरीह सा 
बन जाता है 
अपनों से जैसे 
टूट जाता नाता है 
गर बचना है 
इस परिस्थिति  से 
तो मुक्त करना होगा मन 
उन्माद छोड़ 
मोह को करना होगा भंग|
मोह के भंग होते ही 
उन्माद का ज्वर 
उतर जायेगा 
मन का समंदर भी 
शांत लहरों से 
भर जाएगा ......

(संगीता  स्वरुप )







3 comments:

  1. Main samjhi nahin Aunty ji.....

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  2. is kavita mein yahi kaha gaya hai ke yadi insaan ki icchaayein poori na hon to unka asar kisi vyakti per kaisa hota hai, aur agar hum har moh ko tyaag dein to iccha hi nahi upjegi unhein paane ki tivr iccha nahi hogi, koi kunda , pareshaani nahi hogi jeewan mein , humara man shaant rahega

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