Thursday, July 28, 2016

Aakhir kab tak...

फ़ोन की घंटी लगातार बज रही थी ! मालती जल्दी से रसोई से अपने पल्लू से हाथ पोंछती मन ही मन बुदबुदाती फ़ोन उठाने भागी !
”हेलो …! जी ,मालती से बात कर सकता हूँ ?”.उधर से  एक आवाज़ आई !
”मैं मालती ही बोल रही हूँ,”! ”आप कौन? ”मालती ने पूछा ! उधर से एक मद्धम सी आवाज़ उभरी ….”.मालती ,मैं रितेश बोल रहा हूँ ”!

हाथ से रिसीवर छूट गया मालती के ..”..रि…तेश…!” हेलो..हेलो !”मालती …क्या हुआ ? सुनो ,एक बार ध्यान से सुनो मेरी बात ”! मालती ने कांपते हाथो से रिसीवर उठाया और असमंजस सी ,हैरान ,घबराई आवाज़ में बोली ,”रितेश....... पर तुम तो ….भैया ने बताया था कि तुम्हारा एक्सिडेंट हुआ …और तुम अब इस दुनिया में नहीं हो !”

जनाब, हम भीख नहीं माँगते


उस दिन मिश्रा जी के प्रति मैं पूरी तरह घृणा से भर गया था । वह 31 अक्टूबर 1984 का दिन था । दोपहर बाद कोई तीन बजे के लगभग मैं आगरा ऑफिस में था कि कानाफूसी होने लगी। किसी ने कहा ’ इंदिरा गांधी को मार दिया ’ रेडियो पाकिस्तान से यह खबर सुनी है।’ आधिकारिक रूप से तब तक यह घोषणा नहीं की गई थी । मैं बड़े पशोपेश में था । मुझे इस बात का कतई अनुमान नहीं था कि अब आगे क्या होगा। हत्या हुई है तो जाँच होगी, अपराधियों को सजा मिलेगी। प्रधानमंत्री की हत्या कोई मामूली बात नहीं। परंतु वास्तव में जो होना था उसके बारे में मैं