Friday, January 20, 2012

यूँ पलट जाए ज़िन्दगी ....

किसी की लिखी इन पंक्तियों ने बहुत प्रभावित किया मुझे -

किताबों के पन्नों को पलटकर सोचता हूँ 
यूँ पलट जाए ज़िन्दगी तो क्या बात है ...


कितने साधारण शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी गयी , काश ऐसा मुमकिन होता , ज़िन्दगी इतनी आसानी से पलटी जा सकती , उसमें हुए हादसों , तकलीफों को एक पल में भुलाया जा सकता  और नए सिरे से जिया जा सकता.................

Monday, January 09, 2012

ऊँचाई ..

कितने सुन्दर भाव है इस कविता में, जिसमें ऊँचाई पर पहुंचकर खुद में अहंकार न पैदा होने देने की बात कही गयी है  ............... (a Poem by Atal Bihari Vajpayi)

ऊँचे पहाड़ पर
पेड़ नहीं लगते
पौधे नहीं उगते
न घास ही जमती है

जमती है सिर्फ बर्फ
जो कफ़न की तरह सफ़ेद और
मौत की तरह ठंडी होती है
खेलती , खिलखिलाती नदी
जिसका रूप धारण कर
अपने भाग्य पर बूँद बूँद रोती है

ऐसी ऊँचाई
जिसका परस (स्पर्श)
पानी को पत्थर कर दे

ऐसी ऊँचाई
जिसका दरस हीन भाव भर दे
अभिनन्दन की अधिकारी है
आरोहियों के लिए आमंत्रण है
उस पर  झंडे गाड़े जा सकते हैं

किन्तु गौरैया
वहां नीड़ नहीं बना सकती
न को थका-मांदा बटोही
उसकी छाँव में पल भाल पलक ही झपका सकता है

सच्चाई यह है कि
केवल ऊँचाई ही काफी नहीं होती
सबसे अलग-थलग
परिवेश से पृथक
अपनों से कटा बंटा
शून्य में अकेला खड़ा  होना

पहाड़ की महानता नहीं
मजबूरी है
ऊँचाई और गहराई में
आकाश-पाताल की दूरी है

जो जितना ऊँचा
उतना एकाकी होता है
हर भार को स्वयं ढोता है 
चेहरे पर मुस्कान चिपका
मन ही मन रोता है 

ज़रूरी यह है कि
ऊँचाई के साथ विस्तार भी हो
जिससे मनुष्य
ठूंठ सा खड़ा न रहे
औरों से घुले-मिले
किसी को साथ ले
किसी के संग चले ,

भीड़ में खो जाना
यादों में डूब जाना
स्वयं को भूल जाना
अस्तित्व को अर्थ
जीवन को सुगंध देता है

 धरती को बौनों की नहीं
ऊँचे कद के इंसानों की ज़रुरत है
इतने ऊँचे के आसमान छू लें
नए नक्षत्रों में प्रतिभा के बीज बो लें

किन्तु इतने ऊँचे भी नहीं
कि पाँव तले दूब ही न जमे
कोई काँटा न चुभे
कोई कली  न खिले

न बसंत हो, न पतझड़
हो सिर्फ ऊँचाई का अंधड़
मात्र अकेलेपन का सन्नाटा

मेरे प्रभु
इतनी ऊँचाई कभी मत देना
के गैरों के गले न लग सकूं
इतनी रुखाई कभी मत देना।

वो फिर हार गए ..........

प्रशांत वस्ल जी नें अपनी इस कविता में उस व्यक्ति की मनोस्थिती का वर्णन किया है जो दंगों के दौरान दंगाईयों के झुण्ड की चपेट में आ जाता है , आईये जानें क्या होता है उसके बाद ......


उनका एक जत्था था और मैं अकेला और निहत्था
उनका लक्ष्य था मुझे मिटाना , और मैं चाहता था
उनके आक्रमण से स्वयं को बचाना
इस प्रयास में मैं भागता
तो वो गोलबंद होकर मुझे नोच खाते
इसलिए मैं भागना स्तगित करके
उनका सामना करने की नीयत से अपनी समस्त इन्द्रियों को एकाग्र कर खड़ा रहा
उन्हें मेरा ये व्यवहार बड़ा अटपटा लगा...
वो मेरे चेहरे पर बेचारगी देखना चाहते थे...जो नहीं थी
वो मुझसे आशा कर रहे थे की मैं दया की याचना करूंगा .....जो मैंने नहीं की
क्योंकि मैं मरने से पहले, मरने को तैयार नहीं था ....
धीरे धीरे वो अनिर्णय की स्थिति में एक दूसरे को देखने लगे
किसी निर्णय के इंतज़ार में
जो कोई स्वयं नहीं लेना चाहता था
क्योंकि निर्णय के सही न होने का दोष हर कोई किसी और को देना चाहता था
धीरे धीरे उनके चेहरे उतर गए
और थोड़ी सी देर में वो मुझसे आँखें चुराते
बरसात के झूठे बादलों की तरह बिखर गए
मेरा अकेलापन फिर उनकी तथागथित एकजुटता से जीत गया था
मगर क्या मैं सच मुच अकेला हूँ
नहीं ....
मेरी सोच पर जो मेरा विश्वास है,  वो मेरे साथ है .... और रहेगा
मेरी ताक़त ...मेरा साथी बनकर सदा


Saturday, January 07, 2012

Dont mess with Ladies

A  lady gets pulled over for speeding.....

Older Woman: Is there a problem, Officer?
Officer: Ma'am, you were speeding.
Older Woman: Oh, I see.
Officer: Can I see your license please?
Older Woman: I'd give it to you but I don't have one.
Officer: Don't have one?
Older Woman: Lost it, 4 years ago for drunk driving.
Officer: I see...Can I see your vehicle registration papers please..
Older Woman: I can't do that.
Officer: Why not?
Older Woman: I stole this car..
Officer: Stole it?
Older Woman: Yes, and I killed and hacked up the owner.
Officer: You what?
Older Woman: His body parts are in plastic bags in the trunk if you want to see

The Officer looks at the woman and slowly backs away to his car and calls for back up. Within minutes 5 police cars circle the car. A senior officer slowly approaches the car, clasping his half drawn gun.

Officer 2: Ma'am, could you step out of your vehicle please!The woman steps out of her vehicle.
Older woman: Is there a problem sir?
Officer 2: One of my officers told me that you have stolen this car and murdered the owner. Older Woman: Murdered the owner?
Officer 2: Yes, could you please open the trunk of your car, please.
The woman opens the trunk, revealing nothing but an empty trunk.
Officer 2: Is this your car, ma'am?
Older Woman: Yes, here are the registration papers.
The officer is quite stunned.
Officer 2: One of my officers claims that you do not have a driving license.
The woman digs into her handbag and pulls out a clutch purse and hands it to the officer.The officer examines the license. He looks quite puzzled.
Officer 2: Thank you ma'am, one of my officers told me you didn't have a license, that you stole this car, and that you murdered and hacked up the owner.
Older Woman: Bet the liar told you I was speeding, too.

Don't Mess With Ladies :)

आओ !!! डूब मरें ...

इस कविता के माध्यम से एक तीखा कटाक्ष किया है इस समाज पर 


आओ !!!
डूब मरें ....

जब कायर

नपुंसक
बेशर्म
और मुर्दादिल जैसे शब्द 
हमें झकझोरने में 
हो जाएँ बेअसर
घिघियाना 
गिड़गिडाना 
और लात जूते खाकर भी 
तलवे चाटना
बन जाए हमारी आदत
अपने को मिटा देने की सीमा तक
हम हो जाएँ समझौतावादी

तो आओ !!!

डूब मरें.... 


जब खून में उबाल आना

हो जाए बंद
भीतर महसूस न हो 
आग की तपिश
जब दिखाई न दे
जीने का कोई औचित्य
कीड़े- मकौडों का जीवन भी
लगने लगे हमसे बेहतर 
हम बनकर रह जाएँ केवल
जनगणना के आंकड़े 
राजनितिक जलसों में 
किराए की भीड़ से ज्यादा 
न हो हमारी अहमियत

तो आओ !!!

डूब मरें...

जब हमारी मुर्दानगी के परिणामस्वरूप

सत्ता हो जाए स्वेच्छाचारी 
हमारी आत्मघाती सहनशीलता के कारण 
व्यवस्था बन जाए आदमखोर 
जब धर्म और राजनीति के बहुरूपिये
जाति और मज़हब की अफीम खिलाकर
हमें आपस में लड़ाकर 
' बुल फाईट ' का लें मजा
ताली पीट - पीटकर हँसे 
हमारी मूर्खता पर 
और हम
उनकी स्वार्थ सिद्धि हेतु
मरने या मारने पर 
हो जाएँ उतारू

तो आओ !!!

डूब मरें...

इससे पहले कि 

इतिहास में दर्ज हो जाए 
मुर्दा कौम के रूप में 
हमारी पहचान
राष्ट्र बन जाए 
बाज़ार का पर्याय
जहाँ हर चीज हो बिकाऊ
बड़ी- बड़ी शोहरतें
बिकने को हों तैयार
लोग कर रहे हों
अपनी बारी का इन्तजार
जहाँ बिक रही हो आस्था
बिक रहा ईमान 
बिक रहे हों मंत्री 
बिक रहे दरबान
धर्म और न्याय की
सजी हो दूकान
सौदेबाज़ों की नज़र में हों
संसद और संविधान
देश बेचने का 
चल रहा हो खेल
और हम सो रहे हों
कान में डाले तेल

तो आओ !!!

डूब मरें.....

जब आजाद भारत का अंगरेजी तंत्र

हिन्दी को मारने का रचे षड़यंत्र
करे देवनागरी को तिरस्कृत
मातृभाषा को अपमानित
उडाये भारतीय संस्कृति का उपहास
पश्चिमी सभ्यता का क्रीतदास
लगाये भारत के मस्तक पर 
अंगरेजी का चरणरज
तब इस तंत्र में शामिल 
नमक हरमों को 
देशद्रोही, गद्दारों को
कूड़ेदान में फेंकने के बदले
अगर हम बैठाएं सिर- आँखों पर
करें उनका जय-जयकार 
गुलामी स्वीकार

तो आओ !!!

डूब मरें...

जब सरस्वती के आसन पर हो 

उल्लुओं का कब्ज़ा 
भ्रष्ट, मक्कार और अपराधी
उच्च पदों पर हों प्रतिष्ठित
मानवतावादियों को दी जाए
आजीवन कारावास की सजा 
हिंसा को धर्म मानने वाले 
रच रहें हों देश को तोड़ने की साज़िश 
और हम तटस्थ हो
बन रहें हों बारूदी गंध के आदी
हथियारबंद जंगलों में 
उग रही हो आतंक की पौध
हथियारों की फसल 
लूट ,हत्या बलात्कार
बन गएँ हों दैनिक कर्म
तो गांधी से आँखें चुराते हुए

आओ !!!

डूब मरें...

जब सत्य बोलते समय

तालू से चिपक जाए जीभ
दूसरे को प्रताड़ित होता देख
हम इतरायें अपनी कुशलता पर
समृद्धि पाने के लिए
बेच दें अपनी आदमियत
जब भूख से दम तोड़ते लोग 
कुत्तों द्वारा छोडी हड्डियाँ चूसकर 
जान बचाने की कर रहे हों कोशिश
खतरनाक जगहों, घरों, ढाबों में
काम करते बच्चे 
पूछ रहे हों प्रश्न -
पैदा क्यों किया?
बचपन क्यों छीना?
हमसे कोई प्यार क्यों नहीं करता?
तब आप चाहें हों
किसी भी दल के समर्थक
विकास के दावे पर थूकते हुए
होते हुए शर्मशार

आओ !!!

डूब मरें...

और जब

टूटती उमीदों के बीच
आकस्मात 
कोई लेकर निकल पड़े मशाल
अँधेरे को ललकार
लगा दे जीवन को दांव पर
तो उस निष्पाप, पुण्यात्मा को 
यदि हम दे न सकें
अपना समर्थन
मिला न सकें
उसकी आवाज़ में आवाज़
चल न सकें दो कदम उसके साथ 
अन्धकार से डरकर
छिप जाएँ बिलों में
बंद कर लें कपाट
तो यह
अक्षम्य अपराध है
अँधेरे के पक्ष में खड़े होने का
षड़यंत्र है
उजाले को रोकने का
इसलिए लोकतंत्र को
अंधेरों के हवाले करने से पहले

आओ !!!

डूब मरें....

________poem by uperndra kumar mishr

गिद्ध


प्रशांत वस्ल  जी इस समय एक कानूनी लडाई लड़ने में व्यस्त हैं-  जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ हुए अन्नाय पर आवाज़ उठायी है | उन्हें न्याय  मिलता नज़र नहीं आ रहा,  बस उसी मनोस्थिती  में लिखी उनकी कविता आपसे शेयर कर रही हूँ 


आसमान  में  उड़ते  हुए  वो  "गिद्ध "
बार  बार  नीचे  देखते  हैं 
इस  इंतज़ार  में 
कि  कब  मैं  अपनी  लड़ाई  में  लहू  लुहान  हो  कर  गिरूँ 
कि कब  मैं  हौसला तोड़  कर , सांसें  छोड़  दूं 
और  उनके  भूखे  पेट  भरूँ

खिडकियों  के  आधे  खुले  परदों  से 
कुछ  ‘डरे  हुए ’..
मौत से  पहले  ही  ‘मरे  हुए ’..लोग 
लगातार  ‘इस  अजीब  सी  लड़ाई  का  मज़ा  ले रहे  हैं ’
और  मुन्तज़िर हैं , उस  पल  के 
जब  ‘एक  बार  फिर सच  का  हौसला  झूट  के  गिद्धों  के  खौफनाक  डैनों में  फड-फड़ायेगा
और  ‘कल  के  अखबार  की एक  सनसनी  खेज़  खबर  बन  जाएगा ’.

पत्रकार  मोबाइल  पर  हैं 
चैनल  के  फोटोग्राफर अपने  अपने  कैमरा  सेट  कर के 
सतर्क  हैं ..
इन  सब  के  लिए  ‘खबर ’ तब  बनूँगा  मैं 
जब  ‘गिद्ध ’ मुझे  नोच  कर  खा  चुके  होंगे 
और  सुकून  से  भरे  अपने  पेटों  को  ले  कर  जा चुके  होंगे 
……
कितना  अजीब  है 
मैं  सच   को  जिंदा  रखने  के  लिए  जीना  चाहता  हूँ 
ताकि झूठ  से  लड़  सकूं 
और  ‘ये ’..इस  इंतज़ार  में  हैं  कि मैं  गिरूँ ,टूटूं ,बिखर  जाऊं 
उन्हें  ‘एक  अच्छी  खबर  देने  के  लिए  मर  जाऊं 
‘गिद्धों  से समझौता  है  उन  सबका ’
जहाँ  गिद्धों  की हुकूमत  हो 
उस  देश  का  कुछ  नहीं  हो  सकता ..............................


कवि के द्वारा पूछे गए कुछ सवाल  :   ज़रा  सोचिये  आप  इनमें  से  कौन  हैं 


1.खामोश  तमाशा  देखने  वाले 
2.गिद्धों  के  खिलाफ  लड़ने  वाला  'बेवकूफ !' आदमी ....
3.सच   की  लाश  को  बेच  कर  दौलत  और  शोहरत  हासिल  करने  वाले  पत्रकार /नेता /टीवी  जर्नलिस्ट ...या 
3.गिद्ध .



Harf.......... हर्फ़



hum dono jo harf hain 
हम दोनों जो  हर्फ़  हैं 
hum ek roz mile..
हम एक रोज़ मिले 
ek lafz banaa..
एक लफ्ज़ बना 
aur humne ek maayne paaye...
और हमने एक मायने पाए 
phir jaane kya hum per guzri...
फिर जाने हम पर क्या गुजरी 
aur ab yun hain..
और अब यूँ हैं 
tum ek harf ho, ek khaane mein
तुम एक हर्फ़ हो , एक खाने में 
main ek harf hoon, ek khaane mein
मैं एक हर्फ़ हूँ एक खाने में 
beech mein...
बीच में 
kitne lamhon ke khaane khaali hain
कितने लम्हों के खाने खाली हैं 
phir se koi lafz bane
फिर से कोई लफ्ज़ बने 
aur hum dono ek maayne paayein
और हम दोनों एक मायने पाएं 
aesa ho sakta hai
ऐसा हो सकता है 
lekin
लेकिन 
sochnaa hogaa
सोचना होगा 
in khaali khaanoN mein humein bharnaa kya hai ...............
इन खाली खानों में हमें भरना क्या है ............




ye vo pehli nazm hai jise main kisi se share karna pasand karti hoon, nahi jaanti isey kisne likha , magar sacch mein behad karaamaati hain ye harf..