समय
जब अपनी बही खोलकर बैठा
हिसाब करने
तो
मैं सोच में पड़ गयी
पता ही नहीं चला
कब
मुट्ठी भर सुख की पावना
इतनी बढ़ गयी कि
सारी उम्र बीत गयी
सूद चुकाते चुकाते
मूल फिर भी
जस का तस ......
जब अपनी बही खोलकर बैठा
हिसाब करने
तो
मैं सोच में पड़ गयी
पता ही नहीं चला
कब
मुट्ठी भर सुख की पावना
इतनी बढ़ गयी कि
सारी उम्र बीत गयी
सूद चुकाते चुकाते
मूल फिर भी
जस का तस ......
(मंजू मिश्रा )
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