Thursday, March 01, 2012

अपना सा कुछ...


खोलो खोलो अपनी आँखें और गौर से सुनो 
देने को तो बहुत कुछ है 
पर अपना सा कुछ देना चाहती हूँ ...

एक बूँद सूरज की 
एक कतरा आसमान का 
कोयल की आधी कूक 
और जगमगाते सपने 
अच्छा लगे तो और मांगो 
देने को तो बहुत कुछ है 
अपना सा कुछ देना चाहती हूँ ......

आसमान सा आइना 
एक टिप्पी तितलियों की 

एक चम्मच नदी के धारे 
और एक मुट्ठी ज़िन्दगी   
अच्छा लगे तो और मांगो 
देने को तो बहुत कुछ है 
पर अपना सा कुछ देना चाहती हूँ 

(गुलज़ार)

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