Thursday, March 01, 2012

रीढ़ ......


"सर मुझे पहचाना क्या ?"
बारिश में कोई आ गया 
कपडे थे मुचड़े हुए 
और बाल सब  भीगे हुए 
पल को बैठा , फिर हंसा और बोला ऊपर देख कर
"गंगा मईया कल आई  थी , मेहमान होकर 
कुटिया में रह के गयी 
मायके आई हुई  लड़की की मानिंद 
चारों दीवारों पर नाची 
खाली हाथ अब जाती कैसी ?
खैर से,  पत्नी बची है 
दीवार चूरा हो गयी, चूल्हा बुझा 
जो था , नहीं था, सब गया 
प्रसाद में पलकों के नीचे चार कतरे रख गयी है पानी के 
मेरी औरत और मैं लड़ रहे हैं 
मिटटी कीचड फेंक कर 
दीवार उठा कर आ रहा हूँ 
जेब की जानिब गया था हाथ , कि  हंसकर उठा वो 
ना, ना, ना पैसे नहीं सर 
यूँ ही  अकेला लग रहा था 
घर तो टूटा, रीढ़ की हड्डी नहीं
हाथ रखिये पीठ पैर ,
और इतना कहिये कि 

लड़ो बस .........


(Gulzar)



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